हिंदी-काजू;
संस्कृत- अग्निकृत; गुजराती-काजू;, बंगाली-काजू,हाजली बादाम; कंनर- गेरुबीज; तमिल-अंदिमा;
तेलगु-जीडीमामिडी;
प्राप्तिस्थान:- काजू का मूल उत्पत्ति स्थान अमेरिका का उष्ण कटिबंध क्षेत्र है मगर कई वर्षों से
यह भारतवर्ष के सामुद्रिक किनारों पर भी बहुतायत में पैदा होता है इसका वृक्ष छोटे कद का शाखाएं मुलायम होती हैं इसके पत्ते खिरनी या कटहल के पत्तों की तरह होते हैं इसमें एक प्रकार का गौंद भी लगता है जो पीला या कुछ ललाई लिए हुए रहता है इसके फल सर्दी के दिनों में मेवे के रूप में सारे भारतवर्ष के बाज़ारों में बिकते हैं
गुण:-
आयुर्वेद-
इसका फल कसैला, मीठा और गरम होता है वात कफ, अर्बुद, जलोदर ज्वर, वर्ण धवल रोग व अन्य
चर्म रोगों को यह दूर करता है यह कामोद्दीपक और कृमिनाशक होता है पेचिश,बवासीर और
भूख की कमजोरी में भी यह लाभदायक है इसके
छिलके में धातु परिवर्तक गुण होते हैं इसकी जड़ विरेचक मानी जाती है इसका फल रक्तातिसार
को दूर करने वाला होता है इससे एक प्रकार का तेल प्राप्त किया जाता है जो दाहक
होता है और शरीर पर लगाने से पीला कर देता है
यूनानी- यह मेवा गरम और तर होता है यह शरीर को मोटा करता है दिल को ताकत प्रदान करता है कामोद्दीपक है वीर्य को बढाता है गुर्दे को ताकत देता है और दिमाग के लिए लाभदायक होता है अगर इसको बसी मुह खाकर थोड़ी सी शहद चाट लें तो दिमाग की कमजोरी मिट जाती है सर्द और तर मिजाज वालों के लिए यह भिलावे के समान लाभदायक है
यूनानी- यह मेवा गरम और तर होता है यह शरीर को मोटा करता है दिल को ताकत प्रदान करता है कामोद्दीपक है वीर्य को बढाता है गुर्दे को ताकत देता है और दिमाग के लिए लाभदायक होता है अगर इसको बसी मुह खाकर थोड़ी सी शहद चाट लें तो दिमाग की कमजोरी मिट जाती है सर्द और तर मिजाज वालों के लिए यह भिलावे के समान लाभदायक है
उपयोग-
- शरीर के छोटे छोटे बालों को जलाने के लिए छिलके का तेल उपयोग में लाया जाता है
- कोढ़ से पैदा हुई त्वचा की शुन्यता भी इस तेल के लगाने से समाप्त होती है
- इसके छिलके का तेल लगाने से पैरों के अंदर फटी हुई बिवाई नष्ट हो जाती है
- उपदंश से पैदा हुए फोड़े या लाल चट्टों को मिटाने के लिए भी इसका तेल लगाना लाभदायक होता है
- चेतावनी- यह तेल दाहक और फफोले उत्पन्न करने वाला होता है
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