संस्क्रत-अर्जक,बर्बरी, बन्बरब्री; बंगाली-बाबुई ,तुलसी वनबाबू, तुलसी
मराठी- रानतुल्स; गुजराती- रान्तुलसी भेद;
कन्नर-कगोरले, करियक, गोरले; तेलगु- कारूतुलसी; फारसी- पलंगमुरक; अरबी- फरंजमुस्क |
प्राप्तिस्थान- यह वनस्पति खास करके एशिया व सिंध की है | बंगाल, नेपाल, चटगाँव और पूर्वी नेपाल में भी यह पैदा होती है
पहचान- इसका पौधा सीधा, डालियों वाला और साल भर तक कायम रहनेवाला होता है | इसकी छाल राख के रंग की होती है जब पौधा छोटा होता है तब चार शाखाएं फूटती है | इस की ऊँचाई चार से आठ फीट तक होती है इसके पत्ते दोनों तरफ से चिकने होते है इसके पत्तो की लम्बाई 2 इंच व ज्यादा से ज्यादा 4 इंच तक होती है चिरायता एक औषधि
यूनानी:- यह पेट के आफरे को दूर करनेवाली, कामोद्दीपक, मस्तिस्क की बीमारी ह्दयरोग तथा तिल्ली में लाभ पहूँचाने वाली होती है यह मुंह की दुर्गन्ध को दूर करनेवाली, दांतों के मसुडो को मजबूत बनानेवाली तथा आंतो के दर्द व बवासीर, में लाभ पहूँचाने वाली होती है | करेला के अनेक औषधीय गुण
इसको पानी में उबालकर उसका बफर देने से गतिया व पक्षाघात के रोगियों को लाभ पहुचाता है इसके पत्तों का काढा वीर्य सम्बन्धी रोगों में फायदेमंद है यह सुजाक की भी एक उत्तम औषधि है सिरदर्द व स्नायुशुल में इसके बीजों का उपयोग किया जाता है
मुखपाक या मुख में छाले होने के रोग में इसके पत्तो के समान गुणकारी दूसरी कोई भी वस्तु नही है मुख में छाले होना,मसुडो में पिब भरना तथा दुर्गन्ध होना इत्यादि रोगों में इसके पत्तो को दिन में चार-पांच बार चबाने से अथवा उनका रस लगाने से अद्भुत लाभ होता है अच्छी नौकरी पाने के वास्तु उपाय
प्राप्तिस्थान- यह वनस्पति खास करके एशिया व सिंध की है | बंगाल, नेपाल, चटगाँव और पूर्वी नेपाल में भी यह पैदा होती है
पहचान- इसका पौधा सीधा, डालियों वाला और साल भर तक कायम रहनेवाला होता है | इसकी छाल राख के रंग की होती है जब पौधा छोटा होता है तब चार शाखाएं फूटती है | इस की ऊँचाई चार से आठ फीट तक होती है इसके पत्ते दोनों तरफ से चिकने होते है इसके पत्तो की लम्बाई 2 इंच व ज्यादा से ज्यादा 4 इंच तक होती है चिरायता एक औषधि
गुण:-
आयुर्वेद:- यह चरपरी, रुचिकारक, गर्म तथा वातरोग,कफ व नेत्ररोग को नाश करनेवाली तथा सुखपूर्वक
प्रसव करानेवाली होती है | यह वनस्पति स्वाद में तिक्त,रुखी, शीतल, चरपरी, दाहजनक, तीक्ष्ण, रुचिकारक, ह्दय हितकारी, दीपन, पचने में हल्की, विषनाशक तथा वमन, मूर्छा, वात, कफ चर्मरोग, प्रदाह और पथरीरोग में लाभदायक है |
यूनानी:- यह पेट के आफरे को दूर करनेवाली, कामोद्दीपक, मस्तिस्क की बीमारी ह्दयरोग तथा तिल्ली में लाभ पहूँचाने वाली होती है यह मुंह की दुर्गन्ध को दूर करनेवाली, दांतों के मसुडो को मजबूत बनानेवाली तथा आंतो के दर्द व बवासीर, में लाभ पहूँचाने वाली होती है | करेला के अनेक औषधीय गुण
इसको पानी में उबालकर उसका बफर देने से गतिया व पक्षाघात के रोगियों को लाभ पहुचाता है इसके पत्तों का काढा वीर्य सम्बन्धी रोगों में फायदेमंद है यह सुजाक की भी एक उत्तम औषधि है सिरदर्द व स्नायुशुल में इसके बीजों का उपयोग किया जाता है
मुखपाक या मुख में छाले होने के रोग में इसके पत्तो के समान गुणकारी दूसरी कोई भी वस्तु नही है मुख में छाले होना,मसुडो में पिब भरना तथा दुर्गन्ध होना इत्यादि रोगों में इसके पत्तो को दिन में चार-पांच बार चबाने से अथवा उनका रस लगाने से अद्भुत लाभ होता है अच्छी नौकरी पाने के वास्तु उपाय
उपयोग :
- इसके पत्तो का काढा वीर्य संबंधी निर्बलता को दूर करता है | इसके बिज सिरदर्द व् स्नायुशुल के काम में लिए जाते है इसका ताजा रस कण के टपकने से कण के दर्द में आराम मिलता है मूत्राशय से सम्बन्ध रखने वाली बीमारी में यह लाभ दायक है
- इसके पत्तो का रस पिलाने से सुजाक(सूजन) में आराम मिलता है
- इसके पंचांग(टहनी व पत्ते) को गर्म पानी में उबालकर उसका बफर देने से लकवा व गठिया की बीमारी में लाभ पहूँचता है
- इसके पत्तो के रस को ललाट व कनपटियो पर लेप करने से मस्तिष्क की पीड़ा मिटती है
- इसके बीजों की फंकी देने से स्नायुशूल मिटता है कलौंजी एक औषधि
- इसके सूखे पत्तो का चूर्ण घाव पर डालने से उसके कीड़े निकल जाते है
- इसके बीजो के चूर्ण की पांच से सात मासे तक फंकी देने से जवान आदमी का अतिसार बंद होता है |