प्राप्तिस्थान- यह अरेबियन गल्फ एवं परसिया मेन पाया जाता है पंजाब, मालवा एवं सिंध में सिंध में भी ईसबगोल को कुछ जातियाँ पायी जाती हैं |
पहचान- यह एक प्रकार का प्रकांड रहित झाड़ी नुमा पौधा है जो लगभग तीन फूट ऊंचा होता है इसके पत्ते धान के पत्तों के समान और डलियाँ बारीक होती हैं | डाली के सिरे पर गेंहू की तरह बालें लगती हैं इन बालों में बीज रहते हैं इसके बीजों के ऊपर महीन और सफ़ेद झिल्ली होती है यह झिल्ली उतारने पर ईसबगोल की भूसी के रूप में हो जाती है यहीं इसमें पाये जाने वाले केंद्र हैं |
गुण:-
आयुर्वेद- इसके बीज शीतल शांतिदायक और प्रकृति को मुलायम करने वाले होते हैं यह साफ दस्त लाते हैं मलावा रोग को दूर करते हैं एवं पेट की मरोड़ एवं अतिसार, पेचीस आंतों के घाव में भी यह औषधि बहुत
उपयोगी है | मुट्ठी भर ईसबगोल को प्रतिदिन प्रातः काल सेवन करने से स्वास कष्ट और दमे में बहुत लाभ होता है निरंतर छह मास से दो वर्ष तक सेवन करने से बीस वर्ष तक पुराना दमा भी इससे समाप्त हो जाता है उष्ण प्रकृति के रोगियों को होने वाले शुक्र में भी यह औषधि बड़ी लाभदायक होती है संधिवात, ग्रंथिवात व अन्य वात रोगों में इसकी पुल्टिश चढ़ाने से बड़ा लाभ होता है |
उपयोग-
- ईसबगोल, शीतल मिर्च और कलमी शिरे की फाँकी देने से मूत्र कच्छ में लाभ होता है |
- इसके बीजों को ठंडे पानी में भिगोकर उनके लुआब को छानकर पिलाने से खूनी बवासीर में लाभ होता है
- बूरे (खांड या बारीक पीसी हुई चीनी) के साथ इसका लुआब पिलाने से पेशाब की जलन मिटती है |
- गठिया और जोड़ों की पीड़ा पर इसका पुल्टिश बांधने से लाभ होता है |
- इसको सिरके में पीसकर कनपटियों पर पतला लेप करने से नकसीर बंद होती है
- साल छह महीने लगातार दिन में दो बार ईसबगोल को फाँकी लेते रहने से इस प्रकार के श्वांस रोग समाप्त हो जाते हैं
- एक तौले ईसबगोल का लुआब निकालकर उसमें बूरा (खांड या बारीक चीनी) मिलाकर पिलाने से पित्तोंमाद मिटता है |
ईसबगोल लेने की विधि:-
- स्वच्छ सूखे बीज एक कप पानी में डालकर धो लिए जाते हैं धोने के बाद उनमें एक या दौ चम्मच शक्कर मिलाकर ले लेते हैं
- दूसरी विधि यह है की इसके बीज एक कप पानी में डाल दिये जाते हैं | आधे घंटे में वह सब फूल जाते हैं अगर इच्छा हो तो कुछ शक्कर मिलाकर इस लुआब का सेवन कर लिया जाता हैं
- आधा सेर से एक सेर पानी में इसकी दौ तीन ख़ुराकें डालकर उबाल ली जाती हैं आधा पानी शेष रहने पर उसे उतारकर दौ से लेकर चार औंश की खुराक में तकसीम कर तीन या दौ घंटे के अंतर में ली जाती हैं
- चौथी विधि से इसबगोल के बीज की बजाय उसकी भूसी उपयोग में ली जाती है इस भूसी को आधा तौला से एक तौला तक की मात्रा मे एक कप पानी में डालकर कुछ शक्कर में मिलाकर लेना चाहिए | अगर अंतड़ियों के भाग मल से अवरुद्ध हो तो इस विधि का ईसबगोल करना ज्यादा अच्छा होता है पाचन प्रणाली की तीव्रता पर भारतीय वैध इसी तरकीब को ज्यादा उपयोग में लेते हैं |
Very Helpful Information
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